Wednesday, August 10, 2011

वन्दना गुप्ता की कवितायेँ

(1)
कुछ हिस्सों का पटाक्षेप कभी नहीं होता
सुना था आज
मंगल , शुक्र
बृहस्पति और बुध का
अनोखा संयोग है
आस्मां में चमकेंगे
शाम के धुंधलके में
दो माह तक
मैंने भी बीनने
शुरू कर दिए
अपने हिस्से के दाने
शायद मुझे भी
मेरा सितारा मिल जाये
जो बिछड़ा था
कई जन्म पहले
और जिसे युगों से
मेरी रूह ढूँढ रही है
शायद आज संयोग
बन गया है
शायद आज आस का
दीप फिर जल गया है
शायद आज उम्र जल जाये
और आकाशीय घटना
दिल पर चस्पां हो जाये
इसी आस में कुछ बीज
डाले हैं घड़े में
देखें आकार ले पाती हैं या नहीं
क्या कहा ..........
 ये युतियाँ
खगोलीय होती हैं
तो क्या
हृदयाकाश
बंजर ही रहता है
हाँ , शायद ........
इसीलिए
कुछ हिस्सों का
पटाक्षेप कभी नहीं होता

(2)

दर्द का दरिया

 दर्द को पीने के लिए जीने की कसम खाई हमने
यूँ दर्द की कुछ कीमत चुकाई हमने

जब दर्द के जाम पर जाम लगाए हमने
तब कुछ राहत पायी हमने

दर्द को भी मुकम्मल बनाया हमने
उसे कुछ ऐसे गले लगाया हमने

दर्द और खुद में ना फर्क पाया हमने
यूँ दर्द को आईना दिखाया हमने

(3)  

ठिठकी चांदनी 
चांदनी ठिठकी थी 
इक पल को तेरे आँगन मे
मगर कोई झरोखा 
खुला नही रखा तूने
बता अब दोष किसका है
किस्मत का या चांदनी का
 
कुछ चांदनियां 
उम्र भर दहलीज पर रुकी रहती हैं

(4)
बुलबुले का जीवन क्षणभंगुर होताहै

ख्याली बुलबुलों पर
उड़ान भरती हसरतें
क्या आसमां पाएंगी
राह  में ही
ढह तो नहीं जाएँगी
जब पानी के
बुलबुले का जीवन
क्षणभंगुर होताहै
तो फिर
हवा के बुलबुलों का तो
कोई अस्तित्व ही नहीं
दहलीज पर रुकी रहती हैं

4 comments:

  1. सुन्दर कवितायें....
    वंदना जी को सादर बधाई... आभार शब्द्मंगल...

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  2. sunder kavitayen..vandana ji ko bahut shubhkamnayen.

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  3. दहलीज़ पर ठिठक कर रह जाती हैं
    ये हसरतें
    क्यों पार कर दहलीज़ मेरे दालान में आने से कतराती हैं
    इक अजीब सिहरन सी जगा जाती हैं
    ये हसरतें
    माना कि क्षण-भंगुर इनका आस्तित्व है
    पर इसी क्षण में इक जिंदगी बिता जाती हैं
    ये हसरतें.................पूनम

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