Thursday, August 11, 2011

रेशम की डोर (लघुकथा) : कविता वर्मा

 मम्मी मम्मी कल स्कूल में रेशम की राखी बनाना सिखायेंगे ,मुझे रेशम का धागा दिलवा दो ना.
बिटिया की बात सुनकर सीमा अपने बचपन के ख्यालों में खो गयी .दादी ने उसे रेशम के धागे से राखी बनाना सिखाया था .चमकीले रेशम की सुंदर राखी जब उसने सितारों से सजा कर अपने भाई की कलाई पर बाँधी थी तो उसके भाई ने भावावेश में उसे गले लगा लिया था. लेकिन रेशम की डोर में गाँठ टिकती ही नहीं थी .राखी  बार बार खुल जाती और भाई बार बार उसके पास आकर राखी बंधवाता रहा .तब एक बार झुंझलाकर उसने दादी से कहा था -दादी इसकी डोरी बदल दो ना इसमें गाँठ टिकती ही नहीं. 
दादी ने मुस्कुरा कर कहा था -बेटा रेशम की डोर इसीलिए बाँधी जाती है ताकि भाई बहनों के रिश्ते में कभी कोई गाँठ ना टिके .छोटी सी बच्ची सीमा ऐसी बात कहाँ समझ पाती? 
समय बदला हाथ से बनी राखी की जगह बाज़ार में बिकने वाली सुंदर सजीली महँगी  राखियों ने ले ली .अब राखी के दाम के अनुसार उन्हें कलाई पर टिकाये रखने के लिए सूती डोरियाँ और रिबन लगाने लगे .जिसमे मजबूत गाँठ लगती है और राखियाँ लम्बे समय तक कलाई पर टिकी रहती है .
ऐसी ही एक गाँठ सीमा ने अपने मन में भी बाँध ली थी जो समय के साथ सूत की डोरी की गाँठ  सी मजबूत होती जा रही थी .भाई बहन के स्नेह के बीच फंसी वह गाँठ समय के साथ सूत की डोरी की गाँठ सी मजबूत होती जा रही थी .उसकी कसावट और चुभन के बीच भाई बहन का रिश्ता कसमसा रहा था  लेकिन वह गाँठ खुल नहीं पा रही थी. आज बेटी के बहाने उसे राखी का उद्देश्य फिर याद आ गया . 
मम्मी मम्मी बिटिया की आवाज़ सीमा को यथार्थ में  खींच  लाई . में हरी लाल और पीली राखी बनाउंगी . 
हा बेटा  तुम्हे जो भी रंग चाहिए में दिलवाउंगी  ,और एक राखी में भी बनाउंगी .रेशम की डोर वाली अब कहीं और कोई गाँठ नहीं रहने दूँगी .सीमा ने जैसे खुद से कहा और बाज़ार जाने को तैयार होने लगी. 

2 comments:

  1. बेटा रेशम की डोर इसीलिए बाँधी जाती है ताकि भाई बहनों के रिश्ते में कभी कोई गाँठ ना टिके....
    बहुत खूबसूरत दिल में बसने वाली बात...
    क्या कथा कही है आपने... गागर में सागर भर लिया...
    सादर...
    आभार शब्द्मंगल ...

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  2. pankaj ji shabdmangal ke liye shubhkamnaye...aur laghukatha shamil karne ke liye abhar...

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