कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए
कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए
मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
आँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
किस आईने से देखूँ हालात आज के
कुछ तो सुमन से कह दो संधान के लिए
"पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
ReplyDeleteबेकल है आज दुनिया ईमान के लिए"
वाह! बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
सादर....
मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
ReplyDeleteआँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
सुमन जी ...बेहतरीन गजल के लिए बधाईयां ..
सादर अभिनन्दन !!!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 12 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर,बेकल है आज दुनिया इमान के लिए
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