Thursday, July 21, 2011

पूनम दहिया की दो-कवितायें

(1)
सजा के हसरतों का बाज़ार बैठी हूँ ,
बेचने को सदभावना तैयार बैठी हूँ
मुफ्त बेचती हूँ ,हंसी और ठिठोली
कौड़ी का दाम लेती हूँ ,बेचती हूँ मीठी बोली
खरीदने को कोई है नहीं ,पर बेचती हूँ समानता
...स्वार्थ भरे हाट में लिए मै प्यार बैठी हूँ
खरीददार नहीं कोई ,ये भी जानती हूँ मैं
बिकते हैं घृणा द्वेष ही ज्यादा मानती हूँ मै
सब लगा रहे है बोली बस झूठ और अहंकार की
मै ले के आशा भरे सपने फिर भी भरे बाज़ार बैठी हूँ
आओ लगाओ बोली की बेचती हूँ मीठी बोली
निश्चयों और निष्ठाओं की दुकान है मैंने खोली
भर भी ले मुट्ठियों में ,कि कहीं देर ना हो जाये
मैं खो के भी सब कुछ लुटाने को तैयार बैठी हूँ ....... 

(2)

ज़िंदगी कुछ यूँ हम बिताते चले गए
कभी वो रूठे हम से
कभी हम मनाते चले गए
दर्द था या यादें थी तेरी
हम तो बस आंसूं बहते चले गए
दूर थी मंजिल मेरी
और थके से थे कदम
फिर भी देने साथ तेरा
कन्धों को मिलते चले गए
ज़ख्म तो गहरे थे
पर फिर भी हम को आस थी
हर घडी देती थी आहट ,
,अनबुझी हर एक प्यास थी
और तेरे आने की धुन में
सी के अपने होठों को
सीख लिया हमने भी देखो जीना
और बिना कहे सुने अपने जख्मों को सीना
हम करते रहे इंतजार यूँ ही की आओगे कभी
और बेखबर से तुम बस दिल को सताते चले गए
ज़िंदगी हम ....

9 comments:

  1. आपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!

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  2. ..स्वार्थ भरे हाट में लिए मै प्यार बैठी हूँ...

    ...सीख लिया हमने भी देखो जीना
    और बिना कहे सुने अपने जख्मों को सीना

    वाह बहुत ही उम्दा रचनाएं हैं....
    सादर बधाई एवं आभार...

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  3. अनुपमा जी,
    आपकी बात समझ में नहीं आई.... क्या आपकी किसी रचना के बारे में कह रही हैं? हम कहाँ देखें...?

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  4. .स्वार्थ भरे हाट में लिए मै प्यार बैठी हूँ

    बहुत खूब

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  5. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  6. दोनों रचनाएँ बहुत भावपूर्ण ...

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  7. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  8. दोनों ही रचनाएँ बहुत ही भावपूर्ण एवं कोमल ...शुभ कामनाएं !!!

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