Saturday, July 30, 2011

गीता पंडित की कवितायेँ

 १
 मूक मन के सूने-पथ में ...

 ....
 ...... 
 मन के पंछी
 को मनाने
 आज पल फिर गा रहा,
 
मूक    - मन केसूने  
  पथ में
 कौन है जो आ रहा  |


 कौन से हैं
 वेष और ये
 कौन सी हैं बोलियाँ,

 
क्यूँ नहीं
 आती हैं मिलने
 
मीत मन की टोलियाँ,


 मन की बगिया
 को सजाता  
 कौन फिर से भा रहा,
 मन के पंछी
 को मनाने
 आज पल फिर गा रहा  |


 नेह के
 मनके पिरोते
 
कर रहा मन साधना,

 
पीर है 
 अंतर में गहरी
 
कम ना पर आराधना,

 कौन है जो
 पीर में भी, 
 मन को बाँधे जा रहा,
 मन के पंछी
 को मनाने
 आज पल फिर गा रहा ।|
  .....


 २ 

 मैं हूं पथिक प्रेम पथ की ...
 
 ....
 ...... 

 है पूनम की
 रात अनोखी
 
मन की पायल भी छमके,
 
मन मेरा बन
 पाखी  डोले
 
पल में बिजुरिया सी दमके |

 दूर देश में 
 पिया बसे हैं               
 ओ पुरवाई ! लेकर आ, 
  फिर वंशी की
  धुन पर कोई
 
मीठा-मीठा गान सुना |

 मैं हूँ मीरा
 प्रीत से ही तो
 
मेरे मन में मधुबन है ,
 
ओ परदेसी
 बिना तुम्हारे
 
जीवन भी क्या जीवन है |

 अखियाँ तरस
 गयीं दर्शन को
 
अब तो मीते दरस दिखा ,
 
कहे गोपिका
 मुझको उधव !
 
ज्ञान का ना संदेश सिखा |

 मैं हूं पथिक
 प्रेम पथ की
 
दूजा पथ क्या जानूँ मैं ,
 
प्रेम में कटते
 रैन - दिवस
 
प्रेम ही ईश्वर मानूँ मैं |


 सुर एक हम
 सब में व्यापित
 
प्रेम उसकी अभिव्यक्ति है ,
 
प्रेम परस्पर
 करें सभी से
 
इससे बङी ना भक्ति है | |
  ........
 (गीता पंडित का कविता संग्रह - "मन तुम हरी दूब रहना" से साभार)
 

10 comments:

  1. आभारी हूँ "शब्द मंगल" की जिसने मेरे काव्य संग्रह " मन तुम हरी दूब रहना " की कविताओं को ब्लॉग में स्थान दिया....

    समस्त टीम सहित पंकज त्रिवेदी जी का आभार...
    और शुभ कामनाएँ..


    सस्नेह
    गीता पंडित

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  2. गीता पंडित जी की इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति से परिचय करने के लिए शब्द मंगल का आभार...!!

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  3. मनोहारी कविताएं...आभार...

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  4. अत्यंत ही भावपूर्ण अभिव्यक्तियाँ ..गीता जी शुभकामनाएं ..!!
    पंकज जी शब्द मंगल ..मंगलमयी हो.....सादर !!!

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  5. कौन है जोपीर में भी,
    मन को बाँधे जा रहा,
    मन के पंछी
    को मनाने
    आज पल फिर गा रहा...
    वाह गीता दी दोनों ही कवितायें खुबसूरत है.... सादर बधाई....
    शब्द मंगल का आभार....

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  6. गीता दी!
    "कौन है जो
    पीर में भी,
    मन को बाँधे जा रहा,
    मन के पंछी
    को मनाने
    आज पल फिर गा रहा ..."
    "सुर एक हम
    सब में व्यापित
    प्रेम उसकी अभिव्यक्ति है ,
    प्रेम परस्पर
    करें सभी से
    इससे बङी ना भक्ति है"
    मनभावन पोस्ट ...
    "शब्द मंगल" को इस को यहाँ प्रकाशित करने हेतु आभार ...
    और
    आपको "मन तुम हरी दूब रखना" के लिए
    बधाई

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  7. //सुर एक हमसब में व्यापित
    प्रेम उसकी अभिव्यक्ति है ,
    प्रेम परस्पर करें सभी से
    इससे बङी ना भक्ति है //

    बहुत-बहुत बधाई. इतनी गहरी बात की कहन इतनी सहज और सरल.. वाह-वाह.

    --सौरभ पाण्डेय, इलाहाबाद (उ.प्र.)

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  8. सभी मित्रों के स्नेह के लियें
    मन से आभारी हूँ ...

    शुभ कामनाएं आप सभी को ..

    सस्नेह
    गीता पंडित

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  9. पहला गीत कुछ ठीक भी है किन्तु दूसरा अच्छा नहीं लगा , छंद ठीक होने से भी गीतों में एक बंधन तो रहता ही है यदि उसे तोडा जाये तो कुछ नै बात आ सकती है वरना पुराना तो सभी कुछ है जो हमेशा रहेगा किन्तु कहने का ढंग भी नया नहीं है न ही नइ बात है माफ कीजिएगा मैं तो teacher ही बन गया ...... ठीक है ..ठीक है ..

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  10. चलिए कोई तो मिला जिसने ऐसा कहा लेकिन
    छंद को तोड़ने से ही कविता अच्छी हो जाती है समझ नहीं पायी...

    आपका ब्लॉग नहीं दिखाई दिया पढ़ना चाहती थी..आपकी पसंद..

    मुझे छंद में लिखना पसंद है और छंद जब आता है जब आपके मन में छंद हो...... नयी कविता नवगीत की तरफ फिर से लौटने की कोशिश में है ऐसे में मैं चाहुंगी कि सभी छंद में लिखने का प्रयास करें...... आभार...

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