दिशाओं के मृदंग
बजने लगे ....
इन्द्रधनुषी रंग
सजने लगे
धरा ने ओढ़ी
चुनरिया धानी
सावन आया संग
ले, नयी जवानी
महके फूल, भ्रमर इतराए
मधुर गीत कोयल ने गाये
झूलों कि लग गयी लम्बी कतारें
नदी उफनती चली तोड़ किनारे
मधुमास कलियों ने मनाया
आसमां का दिल भी धरती पर आया
शंख नाद सुन बादलों का ..
मन के तार ...हो कर झंकृत
देखो खुद ही ...सजने लगे
बजने लगे ....
इन्द्रधनुषी रंग
सजने लगे
धरा ने ओढ़ी
चुनरिया धानी
सावन आया संग
ले, नयी जवानी
महके फूल, भ्रमर इतराए
मधुर गीत कोयल ने गाये
झूलों कि लग गयी लम्बी कतारें
नदी उफनती चली तोड़ किनारे
मधुमास कलियों ने मनाया
आसमां का दिल भी धरती पर आया
शंख नाद सुन बादलों का ..
मन के तार ...हो कर झंकृत
देखो खुद ही ...सजने लगे
वाह !!!!!सुंदर श्रृंगार के साथ प्रकृति का नाद निकला है शब्दों का रूप ले कर और सब से सुंदर ..दिशाओं का मृदंग शब्द जबरदस्त !!!!!!!!!!बधाई पूनम जी को Nirmal Paneri
ReplyDeleteशब्द और भाव का सुन्दर सामंजस्य इस रचना में किया है आपने पूनम जी - बहुत खूब - लेकिन एक बात खटकी सावन के मौसम में - "मधुर गीत कोयल ने गाये" - हो सके तो देख लीजियेगा. यूँ रचना बहुत सुन्दर है - अपनी हल की लिखी एक ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद आयीं -
ReplyDeleteघूम रहे हैं जुगनू जैसे चलते फिरते तारे
झींगुर का संगीत सुनाने आती है बरसात
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बहुत सुन्दरता से रची है आपने यह कविता.... पढ़ते हुए सावन महसूस होता है... श्यामल सुमन जी द्वारा रेखांकित की गयी बिंदु महत्वपूर्ण एवं विचार किये जाने योग्य है....
ReplyDeleteयद्यपि मेरे घर के पास ही एक बगीचा है जहां के किसी वृक्ष पर संभवतः 'कोयल' का निवास (?) है और आश्चर्य की इस मौसम में भी यदा कडा सुबह उसकी प्यारी 'कूक' सुनाई दे जाती है...
सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई
सुन्दर भाव और शब्द रचना...
ReplyDelete