Sunday, July 31, 2011

पूनम दहिया की कविता










   दिशाओं के मृदंग
   बजने लगे ....
   इन्द्रधनुषी रंग
   सजने लगे
   धरा ने ओढ़ी
   चुनरिया धानी
   सावन आया संग
   ले, नयी जवानी
   महके फूल, भ्रमर इतराए
   मधुर गीत कोयल ने गाये
   झूलों कि लग गयी लम्बी कतारें
   नदी उफनती चली तोड़ किनारे
   मधुमास कलियों ने मनाया
   आसमां का दिल भी धरती पर आया
   शंख नाद सुन बादलों का ..
   मन के तार ...हो कर झंकृत
   देखो खुद ही ...सजने लगे 

4 comments:

  1. वाह !!!!!सुंदर श्रृंगार के साथ प्रकृति का नाद निकला है शब्दों का रूप ले कर और सब से सुंदर ..दिशाओं का मृदंग शब्द जबरदस्त !!!!!!!!!!बधाई पूनम जी को Nirmal Paneri

    ReplyDelete
  2. शब्द और भाव का सुन्दर सामंजस्य इस रचना में किया है आपने पूनम जी - बहुत खूब - लेकिन एक बात खटकी सावन के मौसम में - "मधुर गीत कोयल ने गाये" - हो सके तो देख लीजियेगा. यूँ रचना बहुत सुन्दर है - अपनी हल की लिखी एक ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद आयीं -

    घूम रहे हैं जुगनू जैसे चलते फिरते तारे
    झींगुर का संगीत सुनाने आती है बरसात
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दरता से रची है आपने यह कविता.... पढ़ते हुए सावन महसूस होता है... श्यामल सुमन जी द्वारा रेखांकित की गयी बिंदु महत्वपूर्ण एवं विचार किये जाने योग्य है....
    यद्यपि मेरे घर के पास ही एक बगीचा है जहां के किसी वृक्ष पर संभवतः 'कोयल' का निवास (?) है और आश्चर्य की इस मौसम में भी यदा कडा सुबह उसकी प्यारी 'कूक' सुनाई दे जाती है...
    सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई

    ReplyDelete
  4. सुन्दर भाव और शब्द रचना...

    ReplyDelete