Monday, July 18, 2011

यादगार शाम : संजय मिश्रा 'हबीब'


 
 याद है मुझे
 गोधुली का खुशनुमा माहौल
 अधखिली कलियों को
 गा गा कर छेड़ते
 शरारती भंवरे,
 और जाने शर्म से
 या परेशान होकर
 इधर उधर डोलती कलियाँ....

 सुदूर दृगसीमा तक फैले 
 हरे पीले लहलहाते खेत.
 छन छन करती, खुशबू उडाती
 धान की स्वर्णिम बालियाँ...

 नीडों की ओर लौटते
 नन्हें नन्हें पक्षियों की
 लुभावनी कतारें,
 निकट ही
 पनघट पर महकती
 ग्राम्य गीतों की अल्हड बहारें...

 आम्र वृक्ष तले
 मंत्रमुग्ध अधलेटा सा मैं,
 और धीरे धीरे गुनगुनाती
 मेरे बालों में कंघी सी करती तुम....

 आह! सचमुच!!
 कितनी मधुर शाम थी वह,
 मेरे प्यारे से गाँव की प्यारी बयार
 मैं नहीं भुला सकता तुम्हें....
 कभी नहीं....!!!

6 comments:

  1. sundar prayas...swagatam...sanjay mishrahabeeb ki kavitaen tazagee ka ahasaas karatee hain...

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  2. “मेरे प्यारे से गाँव की प्यारी बयार”
    मैं नहीं भुला सकता तुम्हें....
    कभी नहीं....!!!बहुत ही भावपूर्ण रचना मधुर यादों को सहलाती
    शुभकामनाएं !!!

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  3. BAHUT BHAVPURN - KAI GRAMIN PARIVESHON KO SAMETATE HUE - BAHUT KHUB SANJAY JEE

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  4. नीडों की ओर लौटते
    नन्हें नन्हें पक्षियों की
    लुभावनी कतारें,
    निकट ही
    पनघट पर महकती
    ग्राम्य गीतों की अल्हड बहारें...

    सुंदर शब्द चित्र ...
    सुंदर रचना ..

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  5. करूँ, आभार "शब्द मंगल..."
    करे विस्तार "शब्द मंगल..."
    सादर....

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  6. संजयमिश्रा ’हबीब’ की इस कविता में प्रकृति-सुषमा के रंग एक-एक करके फैलते गये हैं. आम वृक्ष के नीचे अधलेटे कवि की मनोदशा को हर पाठक जीता है. यहीं कवि अपने पाठकों से तादात्म्य बिठा पाने के प्रयास में सफल होजाता है.
    बधाई.

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